Saturday, May 8, 2010

search....

Can't Say am happy , can't say am sad ...;
Somtimes Nither Am good nor bad...;
Don't know the reason for this... , can't find what all i miss...;
The truth is front of me...;Don't know why can't i see...;
Something is happening , can say surely...;
But my heart is full of fury...;
Am trying to find myself; No one is there who can help...;
Am just romming here and there...;I know the destination is not so near...;
From destination I again start searching a Way...;On this stupidity ,what you have to say...?
My life is nothing...;more than sorrow's Bay...;
All my ways are full of Ups and Downs...;Everything else is silent...;
Its only my heart which makes sound.......................

ज़िन्दगी और मैं....

चलते चलते ज़िन्दगी से कल मुलाकात हूइ...
सड़क के किनारे खड़े हो कर दो मीनट उस से बात हूइ...
कहने लगी तुम्हे बहुत सताया मैंने ...
थोड़ी खुशिया दी और ख़ूब रुलाया मैंने...
जो भी चाहा पाना उसे कभी न मिलने दिया...
अपनी टेढ़ी मेढ़ी राहो पे खूब घुमाया मैंने...
तुम्हारी राहो में पत्थर रख दिए मैंने...
हर दूसरे कदम तुम्हे गिराया मैंने...
इस लिए कहते है मुझसे दुश्मनी अच्छी नही ...
क्युकी अच्छे अच्छो को असलियत का आएना दिखाया मैंने...
मैं सब सुनती रही चुप चाप ....
फिर मुस्कुरा कर बोली...
की ऐ ज़िन्दगी माना तू मुझे रुलाती रही ...
हर कदम सताती रही...
तू ये सोचती है हर कदम तू मुझे घूमती रही ....
पर सच तो ये है की आज तक तुझे अपनी शर्तो पे नचाया मैंने...

और मैं...

कुछ उडी से खुसबू...
कुछ सूखे फूल ....
कुछ फीके रंग...
पेड़ से टूटा एक पत्ता ...
और मैं...
कोई धुंधली सी रौशनी...
बिन मौसम बरसात की कुछ बूंदे ...
रेगिस्तान की कुछ धुल...
कोई सुनी हवेली...
और मैं...
कोई टूटा सा सपना...
कोई भटकी की राह...
कउच्च खोया सामान...
कोई अधूरी जिमेदारी ...
और मैं...
कुछ खामोश सी आवाजे ...
एक प्यारा सा स्पर्श ...
कोई मौन सा एहसास ...
कुछ बिखरे पन्ने ...
और मैं...

Friday, May 7, 2010

नज़र...

सपनो को आसुओ से धुलते देखा है ...
इक्छाओ को धरकनो में छिपते देखा है...
बाते तो बहुत करते है लोग ...
मैंने...
ख़ामोशी को ख़ामोशी से बाते करते देखा है ...
दिन से रात , रात से दिन अजीब नियम है कुदरत का...
मैंने...
अंधेरो को उजालो पे हसते देखा है ...
यु ही हिसाबो में निकल जाता है जीवन...
मैंने...
मौत को जिंदगी से जुआ खेलते देखा है...
अपनों की तलाश में भटकते रहते है लोग...
मैंने...
खुद के साए को अंधेरो में साथ छोरते देखा है...

दिल्ली दिल की नज़र से...

आज दिल की नज़र से फिर दिल्ली देखी ...
पत्थरो के जंगल और गाडियों की खेती देखी ...
वेल्ले दोस्तों के बीजी होने का मंज़र भी देखा ...
खुशियों पे चलती वक़्त की रेती देखी ...
जवानी के माँथे पे पसीना दिखा ...
तो बचपन और बुरापे के माथे पे बेबसी की रेखी देखी ...
सन्नाटे में अपनों की सिसकिय सुनाई दी ...
तो कभी उनकी आखों से बहती डर की धारा देखी ...
यु ही गुजरते गुजरते निराशा की गलियों से ...
दूर कही आशा की खुलती एक खिड़की देखी ...
हाँ आज फिर दिल की नज़र से दिल्ली देखी ...