Tuesday, July 20, 2010

ज़िन्दगी ... ये ज़िन्दगी....

ट्राफ्फिक सिग्नल से रूकती और भागती ये ज़िन्दगी...
भूखी आखों से खाने को ताकती ये ज़िन्दगी...
उम्र भर खुद से लड़ने के बाद , मजबूर हो अंत में मौत से हारती ये ज़िन्दगी...
हर रोज़ मेहनत कर शाम तक थकने के बाद,हर सुबह फिरसे पिसने को जगती ये ज़िन्दगी...
बंद काले शिशो के बहार से , दो वक़्त की रोटी मांगती ये ज़िन्दगी...
कभी फूल वाली , कभी बंदर , तो कभी बहरूपिया बन , न जाने कौन कौन से ताल पे नाचती ये ज़िन्दगी...
दो निवालो की चाह में , खुद को धुप में जलती ये ज़िन्दगी...
रूपये पाने जितनी मेहनत कर के , पैसो में अपना हिस्सा कमाती ये ज़िन्दगी...
ट्राफ्फिक सिग्नल से रूकती और भागती ये ज़िन्दगी...
हाँ ज़िन्दगी ... ये ज़िन्दगी....