Sunday, September 19, 2010

ये रिश्ता क्या कहलाता है...

हजारो अनजाने चेहरों के बीच ... वो अपना सा नज़र आता है...
खुश होते है हम , जब वो कही मुस्काता है...
महसूस करते हम जलन उसकी ... जब सूरज उसे जलाता है ...
फिर पूछती है चेतना हमसे , ये रिश्ता क्या कहलाता है ...
उस के रंग में , अपना मन रंगता चला जाता है ...
जब अपनी तोतली जुबान में , वो अपनी भावना दर्शाता है ...
अनायास ही उसकी ओर धयान चला जाता है ...
कही दूर से जब वो नाम ले के बुलाता है ...
फिर पूछती है चेतना हमसे , ये रिश्ता क्या कहलाता है ...
यु ही मिला था वो सड़क के किनारे ...
अपने भरोसे अपनी भाग्य के सहारे...
ना नाम पता ना जात पता,
ना ही ये की कौन उस के जन्म दाता है ...
फिर पूछती है चेतना हमसे , ये रिश्ता क्या कहलाता है ...

Thursday, September 9, 2010

एक ऐसा बाज़ार भी ....

चाहे अल्ला हो या राम ही ...
यहाँ बिकते है भगवान् भी...
गड्ढे बिकते , खम्भे बिकते , बिकते है घर बार भी॥
इस पे आंसू क्यों बहते हो , जब बिकते है भगवान् भी ...
नींद बिकती , भूख बिकती , बिकते खेत खलिहान भी...
क्यों बेबस हो पड़े हो तुम , यहाँ बिकते है भगवान् भी...
गेंद बिकती , खेल बिकता , बिकते खिलाडी महान भी....क्यों सोच में बैठे हो बंधू ...
यहाँ तो बिकते है भगवान् भी...
फूल बिकते , पत्ते बिकते , बिकते खर पतवार भी...
निरास होने से क्या होगा , जब बिकते है भगवान् भी...
आंसू बिकते , खुशिया बिकती , बिकता यहाँ इंसान भी...
खुद को बचा के रखना भाई ....यहाँ बिकते है भगवान् भी...
धरती बिकती , अम्बर बिकता , बिकता हर इमानदार भी...
ये कलयुग है , यहाँ बिकते है भगवान् भी...
चाहे अल्ला हो या राम ही ... यहाँ बिकते है भगवान् भी...