हमारी दो पल की वो मुलाकात कम थी
वो बिन मौसम हुई बरसात कम थी
तुम भी चुप थे , मैं भी चुप थी...
पर आखों से हुए वो आखों की बात कम थी ...
समंदर की लहरों पे वो साथ चलना...
सूरज को क्षितिज पे ढलते हुए देखना ....
तुम साथ थे ,पर वो सुहानी शाम कम थी...
एक अनजाने परिवार से वो मिलना...
थोरी देर में ही उसका अपना बनना ...
सब कितने खुश थे, पे वो खुशी निभाने को वो रात कम थी...
मंदिर की सीढियों पे वो साथ चढ़ना...
पूजा की थाली हाथ में ले के चलना...
दोनों मांग रहे थे एक ही दुआ , पर दुआ में वो आस कम थी...
वो बिन मौसम हुई बरसात कम थी
तुम भी चुप थे , मैं भी चुप थी...
पर आखों से हुए वो आखों की बात कम थी ...
समंदर की लहरों पे वो साथ चलना...
सूरज को क्षितिज पे ढलते हुए देखना ....
तुम साथ थे ,पर वो सुहानी शाम कम थी...
एक अनजाने परिवार से वो मिलना...
थोरी देर में ही उसका अपना बनना ...
सब कितने खुश थे, पे वो खुशी निभाने को वो रात कम थी...
मंदिर की सीढियों पे वो साथ चढ़ना...
पूजा की थाली हाथ में ले के चलना...
दोनों मांग रहे थे एक ही दुआ , पर दुआ में वो आस कम थी...