Friday, May 7, 2010

नज़र...

सपनो को आसुओ से धुलते देखा है ...
इक्छाओ को धरकनो में छिपते देखा है...
बाते तो बहुत करते है लोग ...
मैंने...
ख़ामोशी को ख़ामोशी से बाते करते देखा है ...
दिन से रात , रात से दिन अजीब नियम है कुदरत का...
मैंने...
अंधेरो को उजालो पे हसते देखा है ...
यु ही हिसाबो में निकल जाता है जीवन...
मैंने...
मौत को जिंदगी से जुआ खेलते देखा है...
अपनों की तलाश में भटकते रहते है लोग...
मैंने...
खुद के साए को अंधेरो में साथ छोरते देखा है...

2 comments:

  1. Once again.. Pretty impressive... Couldnt stop myself from thinking of:

    Mehfil mein rang jamati hai sharaab,
    Saaki ko khud bhatakte dekha hai...

    Jis pyaar ko nasha kehte hain log..
    Uss umeed ko, intezaar ko khote huye dekha hai..

    No offense.. I just couldnt stop myself from adding thse.. You may delete this if you want :) ..

    Cheers
    Nikhil

    ReplyDelete