कौन है मुक्त यहाँ... ???
मैं नही , हाँ कोई भी नही...
मुक्ति शायद कर्तव्यों को निभाने में , अपना अस्तित्वा खो चुकी है...
अंतर मन के द्वन्द में कही बिखर चुकी है...
दायित्वों के निचे कही दब चुकी है...
मैं क्या इस ब्रह्माण्ड में घूमती धरती भी मुक्त नही है...
गुरुत्वाकर्षण बलों से नियन्त्रित उसकी परिक्रमा भी स्वतंत्र नही...
मेरा ह्रदय भी तो धमनियों और शिराओ से युक्त है॥
मेरा अपना स्पंदन ही कहा मुक्त है ...
खुली हवा ... पूर्ण प्रकाश में भी मुक्ति नही मिलती...
तो ये मुक्ति का बोध क्यों होता है...???
मुक्ति की ओर पहला कदम...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर तरीके से मुक्ति बोध करवाया आपने...
बहुत अच्छा .....अध्यात्मिक सोच का परिचायक....लाजवाब।
ReplyDeleteकौन है मुक्त यहाँ... ???
ReplyDeleteमैं नही , हाँ कोई भी नही...
bahut sundar v shashvat saty ko ujagar kartee rachna .badhai .
No one is free here.. truly said.... Keep on writing.....
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