
फरमाएश पे मेरे वो चीनी की रोटी बनाना..
मुझे अपनी थाली का पहला निवाला खिलाना..
आचल की छाव से मुझे सूरज से बचाना..
मेरी बिखरी चीजों को वापस सजाना ...
ये तू ही कर सकती है माँ... ये तू है कर सकती है ...
सर्दियों में वो कोयला जलना...
गरम कपड़ो में मुझे ढक कर बिठाना...
मुझे वो हल्दी वाला दूध पिलाना ...
मेरी गलतियों पे वो प्यार से समझाना...
ये तू ही कर सकती है माँ... ये तू ही कर सकती है...
मेरी जिद्द पे वो अपनी इक्षाए लुटाना ...
हस के वो मेरे सारे नखरे उठाना...
मेरे गुडिया की खातिर वो अपनी साडी ना लाना...
मेरे सपनो को ही अपने सपने बनाना ...
ये तू ही कर सकती है माँ ... ये तू ही कर सकती है...
अपनी नींद गवा कर मुझे रात भर सुलाना ...
मेरी रौशनी के लिए अपना खून जलना ...
जीवन की राहो पे डट के चलना सिखाना ...
मुसीबतों में भी शांत भाव दिखाना ...
ये तू ही कर सकती है माँ ... ये तू ही कर सकती है...
बिना बोले ही मेरी हर बात समझना ...
जो मैं ना कह पाती वो बात पापा से कहना...
मेरे उठाये हर कदम में मेरे साथ चलना ...
हर बार निष्पक्ष फैसला करना...
ये तू ही कर सकती है माँ...ये तू ही कर सकती है...
मुझे खुद से कभी जुदा ना करना...
बेटी को पराया धन ना समझना ...
मुझे तेरे साथ ही रहना है माँ....
तेरी ही आचल की छाव में बढ़ना है माँ ...
तेरे सारे सपने पूरे करने है ...
मुझे तेरी तरह ही निश्छल बहना है माँ...