Saturday, March 26, 2011

जब मैं ना रहूँ


जब मैं ना रहूँ ... इतना याद रहे...
मेरे साथ बहे वो थोड़े आंसू ...और खुल के वो जोर का हसना याद रहे ...
कभी जब भीड़ में तन्हा पाओ खुद को...थी कोई परायी जो अपनी थी ये याद रहे...
जब कभी परेशान हो दुनिया की बातों से...थी कोई पगली सी जो थोड़ी सायानी थी ये याद रहे...
अपनों के संग जब भी दीपों का भी त्यौहार मनाओ तुम...जला था कोई दिए सा तुम्हारे लिए ये याद रहे...

जब कभी दुनिया रंगे तुम्हए अपने रंगों में...रंगा था कोई तुम्हारे रंग में कभी ये याद रहे...
जब कभी नींद ना आये रातों में...हमारा साथ में वो रात भर जागना याद रहे...
कभी जब गर्मी में जल के आओ ...तो वो कड़ाके की ठण्ड में कुल्फी खाना याद रहे...


जब कभी कोई सोचा काम हो जाये ...तो उस पे "ये अच्छा प्लान है " कहना याद रहे...



जब कभी कोई टेबल के निचे बैठ के रोटी खाए ...तो उसे प्यार से बिल्ली बुलाना याद रहे...
जब मैं ना रहूँ ... इतना याद रहे...






Thursday, March 10, 2011

इच्छा....


मन में उठी ये इक्षा अभी अभी....
की सब कुछ छोड़ दूं ... इन बन्धनों को अब बस तोड़ दूं...
पता नही किसी को ...क्या है नियति मेरी ....
अनजाने इन पथों पे मैं...बिना सोचे विचारे ही भटकती हूँ ....
कहाँ ..न जाने कहाँ...
सोचने पर भी कुछ समझ नही पाती...
उस आती ध्वनि की दिशा नही पाती...
उस अनजाने मंजिल का कोई छोर नही पाती ....
अयाचित जीवन यूं ही जी रही हूँ...
मानो अनगढ़ पत्थर सी खड़ी रो रही हूँ....
सोचती हूँ धूल बन बहती हवा के साथ कही बह जाऊं...
इस असीमित विस्तार में कहीं खो जाऊ ....
कहीं खो जाऊं ....

Wednesday, March 9, 2011

मुक्ति का बोध


कौन है मुक्त यहाँ... ???
मैं नही , हाँ कोई भी नही...
मुक्ति शायद कर्तव्यों को निभाने में , अपना अस्तित्वा खो चुकी है...
अंतर मन के द्वन्द में कही बिखर चुकी है...
दायित्वों के निचे कही दब चुकी है...
मैं क्या इस ब्रह्माण्ड में घूमती धरती भी मुक्त नही है...
गुरुत्वाकर्षण बलों से नियन्त्रित उसकी परिक्रमा भी स्वतंत्र नही...
मेरा ह्रदय भी तो धमनियों और शिराओ से युक्त है॥
मेरा अपना स्पंदन ही कहा मुक्त है ...
खुली हवा ... पूर्ण प्रकाश में भी मुक्ति नही मिलती...
तो ये मुक्ति का बोध क्यों होता है...???