Saturday, December 25, 2010

ये तू ही कर सकती है ... माँ ...


फरमाएश पे मेरे वो चीनी की रोटी बनाना..
मुझे अपनी थाली का पहला निवाला खिलाना..
आचल की छाव से मुझे सूरज से बचाना..
मेरी बिखरी चीजों को वापस सजाना ...
ये तू ही कर सकती है माँ... ये तू है कर सकती है ...

सर्दियों में वो कोयला जलना...
गरम कपड़ो में मुझे ढक कर बिठाना...
मुझे वो हल्दी वाला दूध पिलाना ...
मेरी गलतियों पे वो प्यार से समझाना...
ये तू ही कर सकती है माँ... ये तू ही कर सकती है...

मेरी जिद्द पे वो अपनी इक्षाए लुटाना ...
हस के वो मेरे सारे नखरे उठाना...
मेरे गुडिया की खातिर वो अपनी साडी ना लाना...
मेरे सपनो को ही अपने सपने बनाना ...
ये तू ही कर सकती है माँ ... ये तू ही कर सकती है...

अपनी नींद गवा कर मुझे रात भर सुलाना ...
मेरी रौशनी के लिए अपना खून जलना ...
जीवन की राहो पे डट के चलना सिखाना ...
मुसीबतों में भी शांत भाव दिखाना ...
ये तू ही कर सकती है माँ ... ये तू ही कर सकती है...

बिना बोले ही मेरी हर बात समझना ...
जो मैं ना कह पाती वो बात पापा से कहना...
मेरे उठाये हर कदम में मेरे साथ चलना ...
हर बार निष्पक्ष फैसला करना...
ये तू ही कर सकती है माँ...ये तू ही कर सकती है...

मुझे खुद से कभी जुदा ना करना...
बेटी को पराया धन ना समझना ...
मुझे तेरे साथ ही रहना है माँ....
तेरी ही आचल की छाव में बढ़ना है माँ ...
तेरे सारे सपने पूरे करने है ...
मुझे तेरी तरह ही निश्छल बहना है माँ...

Saturday, December 18, 2010

वही शहर जो आज कल मुंबई कहलाता है


पहली बार में ही जो अपना सा नज़र आता है
खुली आखों में जो हजारो सपने रख जाता है
हर मोड़ पे जो जीने के सौ बहाने दिए जाता है
वही शहर जो आज कल मुंबई कहलाता है
हर कोई जहा जगता और दुसरो को जगाता है
चौबीसों घंटे जहा इंसान , इंसानों के सैलाब में बहा जाता है
जो रात में भी दिन का मंज़र दिखलाता है
वही शहर जो आज कल मुंबई कहलाता है
जहा ज़िन्दगी की रेल और हर बन्दा पटरियों पे भागता नज़र आता है
जहा हाजी अली के दर्शन को हर मज़हब का इंसान जाता है
सिद्धि विनायक की क़तर में मनप्रीत ,जोनी और अली भी खड़ा हो जाता है
वही शहर जो आज कल मुंबई कहलाता है
बारिश में जो बड़ा टापू बन जाता है
छोटा बड़ा हर कोई चाहता है इसे
आमिरो का सौख , गरीबो का घर बार बन जाता है
वही महानगर जो आज कल मुंबई कहलाता है

Friday, November 19, 2010

गैरो में अपनों को तलाशते रहे ...
पत्थर से दिल को तराशते रहे ...
क्या मिला क्या खो दिया... इस बात का हिसाब कहा रख पाए...
अपने मन और हाथों पे ज़ख़्म लगा बठे...
कभी हम लोगो से कभी लोग हमसे बातें मनवाते रहे...
बेमानी ये रिश्ते निभाते रहे...
दुसरो की मैं मैं की लड़ाई में...
हम अपना अस्तित्व गवा बैठे ...

Sunday, September 19, 2010

ये रिश्ता क्या कहलाता है...

हजारो अनजाने चेहरों के बीच ... वो अपना सा नज़र आता है...
खुश होते है हम , जब वो कही मुस्काता है...
महसूस करते हम जलन उसकी ... जब सूरज उसे जलाता है ...
फिर पूछती है चेतना हमसे , ये रिश्ता क्या कहलाता है ...
उस के रंग में , अपना मन रंगता चला जाता है ...
जब अपनी तोतली जुबान में , वो अपनी भावना दर्शाता है ...
अनायास ही उसकी ओर धयान चला जाता है ...
कही दूर से जब वो नाम ले के बुलाता है ...
फिर पूछती है चेतना हमसे , ये रिश्ता क्या कहलाता है ...
यु ही मिला था वो सड़क के किनारे ...
अपने भरोसे अपनी भाग्य के सहारे...
ना नाम पता ना जात पता,
ना ही ये की कौन उस के जन्म दाता है ...
फिर पूछती है चेतना हमसे , ये रिश्ता क्या कहलाता है ...

Thursday, September 9, 2010

एक ऐसा बाज़ार भी ....

चाहे अल्ला हो या राम ही ...
यहाँ बिकते है भगवान् भी...
गड्ढे बिकते , खम्भे बिकते , बिकते है घर बार भी॥
इस पे आंसू क्यों बहते हो , जब बिकते है भगवान् भी ...
नींद बिकती , भूख बिकती , बिकते खेत खलिहान भी...
क्यों बेबस हो पड़े हो तुम , यहाँ बिकते है भगवान् भी...
गेंद बिकती , खेल बिकता , बिकते खिलाडी महान भी....क्यों सोच में बैठे हो बंधू ...
यहाँ तो बिकते है भगवान् भी...
फूल बिकते , पत्ते बिकते , बिकते खर पतवार भी...
निरास होने से क्या होगा , जब बिकते है भगवान् भी...
आंसू बिकते , खुशिया बिकती , बिकता यहाँ इंसान भी...
खुद को बचा के रखना भाई ....यहाँ बिकते है भगवान् भी...
धरती बिकती , अम्बर बिकता , बिकता हर इमानदार भी...
ये कलयुग है , यहाँ बिकते है भगवान् भी...
चाहे अल्ला हो या राम ही ... यहाँ बिकते है भगवान् भी...

Tuesday, July 20, 2010

ज़िन्दगी ... ये ज़िन्दगी....

ट्राफ्फिक सिग्नल से रूकती और भागती ये ज़िन्दगी...
भूखी आखों से खाने को ताकती ये ज़िन्दगी...
उम्र भर खुद से लड़ने के बाद , मजबूर हो अंत में मौत से हारती ये ज़िन्दगी...
हर रोज़ मेहनत कर शाम तक थकने के बाद,हर सुबह फिरसे पिसने को जगती ये ज़िन्दगी...
बंद काले शिशो के बहार से , दो वक़्त की रोटी मांगती ये ज़िन्दगी...
कभी फूल वाली , कभी बंदर , तो कभी बहरूपिया बन , न जाने कौन कौन से ताल पे नाचती ये ज़िन्दगी...
दो निवालो की चाह में , खुद को धुप में जलती ये ज़िन्दगी...
रूपये पाने जितनी मेहनत कर के , पैसो में अपना हिस्सा कमाती ये ज़िन्दगी...
ट्राफ्फिक सिग्नल से रूकती और भागती ये ज़िन्दगी...
हाँ ज़िन्दगी ... ये ज़िन्दगी....

Saturday, June 5, 2010

ये रिश्ते ...

ये रिश्ते है रेत से ...
उस बंज़र से खेत से...
हम जहा बोते है अपनों के बीज ...
सींचते है उन्हें अपने प्यार से...
जिम्मेदियो और कर्तव्यों की खाद दाल के...
पोसते है उन्हें अपनी इक्षा और स्वार्थ से...
फिर आता है मौसम फसल (रिश्तो) के पकने का...
बूढ़ी हड्डियों के बोझ से हमारे थकने का...
पके फसलो को या तो हम काट देते है...
या हवा ले जाती है उन्हें दूर हमसे...
सुखाड़ के वक़्त जब हम ढूँढ़ते है उन्हें...
जरुरत में अपनों को जब ढूँढती है आखे...
दिलशा देती है वो फसल हमे दूर से...
थके हाथो से मुट्ठी कसने की कोशिश में ...
फिसलते जाते है रिश्ते अपने हाथ से...
क्युकी ये रिश्ते है रेत से...
उस बंज़र से खेत से...

Saturday, May 8, 2010

search....

Can't Say am happy , can't say am sad ...;
Somtimes Nither Am good nor bad...;
Don't know the reason for this... , can't find what all i miss...;
The truth is front of me...;Don't know why can't i see...;
Something is happening , can say surely...;
But my heart is full of fury...;
Am trying to find myself; No one is there who can help...;
Am just romming here and there...;I know the destination is not so near...;
From destination I again start searching a Way...;On this stupidity ,what you have to say...?
My life is nothing...;more than sorrow's Bay...;
All my ways are full of Ups and Downs...;Everything else is silent...;
Its only my heart which makes sound.......................

ज़िन्दगी और मैं....

चलते चलते ज़िन्दगी से कल मुलाकात हूइ...
सड़क के किनारे खड़े हो कर दो मीनट उस से बात हूइ...
कहने लगी तुम्हे बहुत सताया मैंने ...
थोड़ी खुशिया दी और ख़ूब रुलाया मैंने...
जो भी चाहा पाना उसे कभी न मिलने दिया...
अपनी टेढ़ी मेढ़ी राहो पे खूब घुमाया मैंने...
तुम्हारी राहो में पत्थर रख दिए मैंने...
हर दूसरे कदम तुम्हे गिराया मैंने...
इस लिए कहते है मुझसे दुश्मनी अच्छी नही ...
क्युकी अच्छे अच्छो को असलियत का आएना दिखाया मैंने...
मैं सब सुनती रही चुप चाप ....
फिर मुस्कुरा कर बोली...
की ऐ ज़िन्दगी माना तू मुझे रुलाती रही ...
हर कदम सताती रही...
तू ये सोचती है हर कदम तू मुझे घूमती रही ....
पर सच तो ये है की आज तक तुझे अपनी शर्तो पे नचाया मैंने...

और मैं...

कुछ उडी से खुसबू...
कुछ सूखे फूल ....
कुछ फीके रंग...
पेड़ से टूटा एक पत्ता ...
और मैं...
कोई धुंधली सी रौशनी...
बिन मौसम बरसात की कुछ बूंदे ...
रेगिस्तान की कुछ धुल...
कोई सुनी हवेली...
और मैं...
कोई टूटा सा सपना...
कोई भटकी की राह...
कउच्च खोया सामान...
कोई अधूरी जिमेदारी ...
और मैं...
कुछ खामोश सी आवाजे ...
एक प्यारा सा स्पर्श ...
कोई मौन सा एहसास ...
कुछ बिखरे पन्ने ...
और मैं...

Friday, May 7, 2010

नज़र...

सपनो को आसुओ से धुलते देखा है ...
इक्छाओ को धरकनो में छिपते देखा है...
बाते तो बहुत करते है लोग ...
मैंने...
ख़ामोशी को ख़ामोशी से बाते करते देखा है ...
दिन से रात , रात से दिन अजीब नियम है कुदरत का...
मैंने...
अंधेरो को उजालो पे हसते देखा है ...
यु ही हिसाबो में निकल जाता है जीवन...
मैंने...
मौत को जिंदगी से जुआ खेलते देखा है...
अपनों की तलाश में भटकते रहते है लोग...
मैंने...
खुद के साए को अंधेरो में साथ छोरते देखा है...

दिल्ली दिल की नज़र से...

आज दिल की नज़र से फिर दिल्ली देखी ...
पत्थरो के जंगल और गाडियों की खेती देखी ...
वेल्ले दोस्तों के बीजी होने का मंज़र भी देखा ...
खुशियों पे चलती वक़्त की रेती देखी ...
जवानी के माँथे पे पसीना दिखा ...
तो बचपन और बुरापे के माथे पे बेबसी की रेखी देखी ...
सन्नाटे में अपनों की सिसकिय सुनाई दी ...
तो कभी उनकी आखों से बहती डर की धारा देखी ...
यु ही गुजरते गुजरते निराशा की गलियों से ...
दूर कही आशा की खुलती एक खिड़की देखी ...
हाँ आज फिर दिल की नज़र से दिल्ली देखी ...