Friday, May 7, 2010

दिल्ली दिल की नज़र से...

आज दिल की नज़र से फिर दिल्ली देखी ...
पत्थरो के जंगल और गाडियों की खेती देखी ...
वेल्ले दोस्तों के बीजी होने का मंज़र भी देखा ...
खुशियों पे चलती वक़्त की रेती देखी ...
जवानी के माँथे पे पसीना दिखा ...
तो बचपन और बुरापे के माथे पे बेबसी की रेखी देखी ...
सन्नाटे में अपनों की सिसकिय सुनाई दी ...
तो कभी उनकी आखों से बहती डर की धारा देखी ...
यु ही गुजरते गुजरते निराशा की गलियों से ...
दूर कही आशा की खुलती एक खिड़की देखी ...
हाँ आज फिर दिल की नज़र से दिल्ली देखी ...

3 comments:

  1. Hey... Stumbled on this post searching something else... A Good one.. Seems like everybody's story.. :) And yes, it always feel that there might be end of the tunnel.. but sadly enough there isnt...
    Once again.. A good read.. Something that can be easily related to...
    Cheers

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