Saturday, May 8, 2010

ज़िन्दगी और मैं....

चलते चलते ज़िन्दगी से कल मुलाकात हूइ...
सड़क के किनारे खड़े हो कर दो मीनट उस से बात हूइ...
कहने लगी तुम्हे बहुत सताया मैंने ...
थोड़ी खुशिया दी और ख़ूब रुलाया मैंने...
जो भी चाहा पाना उसे कभी न मिलने दिया...
अपनी टेढ़ी मेढ़ी राहो पे खूब घुमाया मैंने...
तुम्हारी राहो में पत्थर रख दिए मैंने...
हर दूसरे कदम तुम्हे गिराया मैंने...
इस लिए कहते है मुझसे दुश्मनी अच्छी नही ...
क्युकी अच्छे अच्छो को असलियत का आएना दिखाया मैंने...
मैं सब सुनती रही चुप चाप ....
फिर मुस्कुरा कर बोली...
की ऐ ज़िन्दगी माना तू मुझे रुलाती रही ...
हर कदम सताती रही...
तू ये सोचती है हर कदम तू मुझे घूमती रही ....
पर सच तो ये है की आज तक तुझे अपनी शर्तो पे नचाया मैंने...

4 comments:

  1. Well dis one is a masterpiece... seems tht u hv observed lyf so keenly.

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  2. really....summed up life so beautifully...brilliant writing...keep up the good work :)

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  3. Gr8...Simply Gr8
    You have explained all the uneasiness of life in such an easy manner.
    Suchit

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