Thursday, September 9, 2010

एक ऐसा बाज़ार भी ....

चाहे अल्ला हो या राम ही ...
यहाँ बिकते है भगवान् भी...
गड्ढे बिकते , खम्भे बिकते , बिकते है घर बार भी॥
इस पे आंसू क्यों बहते हो , जब बिकते है भगवान् भी ...
नींद बिकती , भूख बिकती , बिकते खेत खलिहान भी...
क्यों बेबस हो पड़े हो तुम , यहाँ बिकते है भगवान् भी...
गेंद बिकती , खेल बिकता , बिकते खिलाडी महान भी....क्यों सोच में बैठे हो बंधू ...
यहाँ तो बिकते है भगवान् भी...
फूल बिकते , पत्ते बिकते , बिकते खर पतवार भी...
निरास होने से क्या होगा , जब बिकते है भगवान् भी...
आंसू बिकते , खुशिया बिकती , बिकता यहाँ इंसान भी...
खुद को बचा के रखना भाई ....यहाँ बिकते है भगवान् भी...
धरती बिकती , अम्बर बिकता , बिकता हर इमानदार भी...
ये कलयुग है , यहाँ बिकते है भगवान् भी...
चाहे अल्ला हो या राम ही ... यहाँ बिकते है भगवान् भी...

4 comments:

  1. Wah...Wah...! Kiya Baat hai....good one...aiyse hi likhate raho ..... all the best.

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  2. yeh, this is fine. but one thing i have found that this is a passimistic poem, while the need of new generation is to be optimistic. so can i expect something very soon.
    keep it up.

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  3. wow! superb. what a true perception. impressive. gr8 work

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